उत्तराखंड का प्रागैतिहासिक काल और इतिहास के कुछ महत्वपूर्ण बिंदु। उत्तराखंड की समस्त परीक्षाओं के लिए | कुणिंद वंश का शासन काल
अगर हम उत्तराखंड के सबसे पुराने इतिहास की बात करें तो हमें कोई ख़ास जानकारी तो नहीं मिलती परन्तु कहीं उल्लेख मिलता है। किसी किताब में या फिर अभिलेखों में। क्योंकि उत्तराखंड का लिखित इतिहास उतना नहीं मिलता जितना अन्य राज्यों का या फिर देश का मिलता है। सबसे पहले अगर हम बात करें तो कुणिंद शासन काल का पता चलता है। जो की महाभारत के वन पर्व में भी पुलिंद या कुणिंद वंश का उल्लेख किया गया है। और यहाँ के राजा को उस समय सुबाहु नाम से बताया गया है। लेकिन यह भी कहा जाता है की सर्वप्रथम यहाँ पर कोल जनजाति का निवास था। जो यहाँ के मूल निवासी थे तथा मध्य एशिया से नहीं आये थे। उसके बाद यहाँ पर किरात आये और कोल लोगों को युद्ध में हराकर मैदानी भागों से पहाड़ी भागों में भगाया। लेकिन साथ में उन्होंने कोलों के साथ वैवाहिक सम्बन्ध भी स्थापित किये। फिर शुरुआत होती है कुणिंद वंश जिनको पुलिंद भी कहा जाता है। और जब कुणिंद वंश के बारे में प्रमाण की बात आती है तब तक भारत पर मौर्य काल शासन शुरू हो चूका था। और मोर्योत्तर काल के कुछ अभिलेख कालसी देहरादून में भी मिलते हैं। तो आप समझ ही सकते हैं की बौद्ध आये 563 ई. पु. और उनके काफी बाद ही मौर्य काल शुरू होता है। तो लगभग अगर हम माने तो इस समय को 300 ई. पु. से लेकर 300 ईस्वी तक कुणिंद शासन काल मान सकते हैं।
कुणिंद शासन काल के बारे में हमें तीन प्रकार की मुद्राओं से पता चलता है। अमोधभूति मुद्रा, अल्मोड़ा प्रकार की मुद्रा और छत्रेश्वर प्रकार की मुद्रा। अमोधभूति प्रकार की मुद्रा में हमें यह ज्ञात पड़ता है की उसमे लिखा गया है "महाराज अमोधभूति" तो यहाँ से हमें एक राजा का नाम पता चलता है और यह भी कहा जाता है की कुणिंद वंश से सबसे महान राजा शायद यही रहे होंगे। और सबसे महत्वपूर्ण बात यह भी पता चलती है की कुणिंदों की राजधानी उस समय श्रीनगर में रही होगी। लेकिन यह तब की बात है जब मौर्य काल शुरू भी नहीं हुआ था। उसके बाद कुणिंदों की राजधानी तो कालकोट कलसी भी बताया जाता है और इसे उस समय शत्रुघ्न नगर कहा जाता था। जो की एक काफी बड़ी राजधानी रही होगी जिसमे आज का सहारनपुर भी शामिल है।
अमोधभूति प्रकार की जो मुद्राएं मिलती हैं वह रजत यानि की चांदी और ताम्बे से बानी हुई थी। और जिस लिपि में लिखा गया है वह ब्राह्मी लिपि है। मुद्राओं के आधार पर अन्य जिन राजाओं का पता चलता है वो हैं "विशदेव, धनभूति, अगर्राज और अमोधभूति। और साथ में यह भी कहा जाता है की इनका शासन वंशानुगत ना होकर कर्मानुगत रहा होगा।
कुणिंदो की राजधानी की बात करें तो मुद्राओं के आधार पर पता चलता है की इनकी राजधानी , श्रीनगर , कालसी , शत्रुघन नगर और फिर कुमांऊँ में रही होगी। कुणिंदो के शासन के दौरान एक और राजा का पता चलता है राजा शीलवर्मन, जिन्होंने अश्वमेघ यज्ञ भी कराया था।
तो दोस्तों यह थी कुणिंदो या फिर कहें की कुणिंद वंश का शासन काल। इसके बाद यहाँ पर आते हैं पौरव वंश और अगले भाग में हम इसी वंश के बारे में जानेंगे।
धन्यवाद् तब तक के लिए बने रहिये साथ।
Comments
Post a Comment
Thanks for your feedback, If you have any query so pls attach your email address with your comment, then we will respond to your comments.